True love rises above all virtues and grounds and transcends all obstacles beyond all differences and achieves its goal...To read this blog please Visit.
" पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।। "
" Pothi padh padh jag mua, pandit bhaya na koy,
Dhai aakhar prem ka , padhe so pandit hoy… "
सभी किताबें पढ़ कर मर गए, लेकिन कोई पंडित न हुआ । प्रेम का ढाई अक्षर जिसने पढ़ा वही पंडित हुआ।
अमुक स्त्री या पुरुष मुझसे प्रेम करता या करती है, ऐसा सोचना समझना विभ्रम है। स्त्री-पुरुष का प्रकृति भेद द्वैत है, जो एक चक्रीय पूरक व्यवस्था है। वास्तव में एक के ही परिवर्तित दो भिन्न रूपों का विकास एक रूप को अपने अंदर ही छिपा जाता है। प्रत्येक स्त्री अथवा पुरुष के अंदर एक पुरुष अथवा स्त्री छिपी होती है ,जिसे ही हम वाह्य संसार में ढूंढते हैं | प्रमुख रूप से स्त्री को सृजन एवं पुरुष को सुरक्षा का उत्तरदायित्व प्रकृति प्रदत्त है | दोनों मिलकर संयुक्त रूप से पालन पोषण करते हैं। स्त्री चयन की प्रथम अधिकारिणी होती है। स्त्री का स्त्रीत्व एवं पुरुष का पौरुष, यही आधारभूत भिन्नता आपस में आकृष्ट करती हैं, पुनः एक होने के लिए। इस प्रकार सृष्टि के चक्र की निरंतर गतिशीलता अर्थात पुनरावृत्ति होती रहती है।
All died reading books. But no one become knowledgeable. The person who read two and a half letters of Prem became knowledgeable.
It is a illusion to think that a woman or man loves me. The nature of man and woman is duality, which is a cyclic complement system. In fact, The development of two different forms of the same, hides one form within itself. There is a man or woman hidden inside every woman or man, which is what we find in the outer world. Mainly the responsibility of creation relates to woman and security to man is conferred by nature. Both of them jointly nurture. The woman is the first authority to choose. Femininity of woman, and masculinity of man this is the basic difference that attracts each other, to be one again. In this way, the continuous movement of the cycle of creation keeps on recurring.
" चलती चाकी देखकर , दिया कबीरा रोय ।
दुइ पाटन के बीच में , साबुत बचा ना कोय॥ "
– कबीर दास
" Chalti chaki dekh kar, diya kabira roy,
Dui patan ke beech me, sabut bacha na koy… "
– Kabir Dasजीवन के चक्रीय व्यवस्था में समाहित द्वैत-अद्वैत का सिद्धांत ही प्रदर्शित होता है। दोनों की आधारभूत भिन्नता अर्थात भिन्न मार्ग से आते हैं, एक स्थान पर मिलते हैं अर्थात एक होते हैं, पुनः अपने ही मार्ग पर चलते हैं। यह अपना मार्ग ही आत्मज्ञान का मार्ग है। “जोड़ियां स्वर्ग से ही बनकर आती हैं”। दो योग्य अर्थात समान स्तर से एक दूसरे को समर्पित युगल एक रूप अर्थात नर- नारी से अर्धनारीश्वर हो कर भवसागर पार परम धाम परमेश्वर को प्राप्त होते हैं। यही सच्चा प्रेम है। सच्चा प्यार सभी गुणों और आधार से ऊपर उठकर सभी भिन्नताओं से परे सभी बाधाओं को पार करता हुआ अपना लक्ष्य प्राप्त करता है।The principle of dvait and advait , embodied in the cyclic system of life, is displayed. The basic differences of the two – that is, they come from a different path, meet at one place , become one, and then go on their own path. Its own path is the path of enlightenment! ” Marriages are made in heaven “. Two worthy, ie couples dedicated to each other from the same level – male and female , become one ‘Ardhanarishvar’ and by crossing the Bhavsagar, are obtained to God , the ultimate abode. This is true love. True love rises above all virtues and grounds and transcends all obstacles beyond all differences and achieves its goal.
" रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ि जाय।। "
– रहीम दास
" Rahiman dhaga prem ka, mat toro chatkay,
Toote pe phir na jure, jure gath par jay… "
– Rahim Dasचक्रीय निरंतर गतिशीलता ही सच्चे प्रेम के परख की कसौटी है और प्रेम-देयता ही मात्र विकल्प है |Cyclic continuous mobility is the only criterion of true love and only granting love is accountability .
"कस्तुरी कुंडल बसै, मृग ढूढ़ै वन माहि।
ऐसे घट घट राम हैं, दुनिया देखे नाहि।। "
– कबीर दास
“Kastoori kundal basay, mrig dhoondhe van maahi,
Aise ghat ghat raam hain,duniya dekhe naahi… “
– Kabir Das
जिस प्रकार ब्रम्ह सृष्टि की प्रत्येक रचना में व्याप्त हैं किन्तु सब उसे देख नहीं सकते। रहस्य यही है-जिसे हम बाहर से ढूंढते हैं, ढूंढ लेते हैं , अंततः उसे प्राप्त करना अपने अंदर ही है।
Just as Brahm is involved in every creation of the world, but everyone can’t recognize . This is the secret – what we seek from outside, we find. Ultimately it is within ourselves to get it.
” लाली मेरे लाल की, जित देखूँ तित लाल |
लाली देखन मैं गई, मैं भी हो गई लाल || “
– कबीर दास
Laali mere lal ki, jit dekhu tit lal,
Laali dekhan main gaee, main bhee ho gai laal…”
– Kabir Das
संछेप में “सभी से सौहार्दपूर्ण व्यवहार करे, कौन जाने उनमे से कोई अपना निकल आए। ” यही प्रेमानंद से परमानंद अर्थात ‘सत्-काम’ है।
In short “Treat everyone in a cordial manner, who knows whether any of them may be your own .” This is all from love to Ecstasy ie. “SAT KAAM“.
To Be Continued …
1 comment:
Amazing 😍😍
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